ऋणम कृत्वा, घृतम पिबेत

कर्नाटक के सोमलपुरा में रहने वाले 27 वर्षीय युवा किसान ने पिछले सप्ताह आत्महत्या कर ली। कारण था, कर्ज का बोझ। उसके ऊपर मात्र एक लाख पैंसठ हजार रुपये का बैंक कर्ज था। उसी राज्य के एक उद्योगपति की बात ही कुछ और है। वह करोड़ों के कर्ज में डूबा हुआ है। सरकारी बैंक उसे कर्ज से उबारने के लिए कर्ज देते रहे हैं। उसकी खासियत है कि वह कर्ज वापस नहीं करता है। फिर भी उसकी शान में कोई कमी नहीं है। वह आज भी पार्टियों में बेशुमार दौलत उड़ाता है। बैंकों के बड़े अधिकारी भी उसकी पार्टियों का लुत्फ लेते हैं। कोई उससे कर्ज वसूली की जहमत नहीं उठता है। ऐसे उद्योगपतियों की संख्या हजारों में हैं। अब तक बैंकों ने ऐसे कर्जों पर पर्दा डाल रखा था। यह तो आरबीआई गवर्नर रघुराम राजन के प्रयासों का फल है कि आज बैंकों ने अपनी कुल गैर निष्पादित संपत्ति (एनपीए) की राशि का खुलासा किया है, जो एक लाख साठ हजार करोड़ से भी ज्यादा है। एनपीए के बोझ से सरकारी बैंकों की वित्तीय स्थिति गंभीर हो गई है। अब जरूरत है कि बैंक विलफुल डिफॉल्टर का नाम भी सार्वजनिक करें और उनकी संपत्ति को कुर्क कर कर्ज की वसूली करें।
Published in Amar Ujala, Mon Jan 15, 2016.
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